कार्तिक मास शुक्ल पक्ष के समाप्ति के बाद 10 अक्टूबर से प्रारम्भ होगा। कार्तिक मास की महिमा कई पुराणों में बताई गई है।
स्कन्द पुराण के वैष्णव खंड में कार्तिक मास का विशेष महत्व बताया गया है। जिसमे ब्रह्मा जी ने अपने मानस पुत्र श्री नारद जी को इसकी महिमा बताई है।
ब्रह्माजी बोले- मासोंमें कार्तिक, देवताओंमें भगवान् विष्णु और तीर्थोंमें नारायणतीर्थ (बदरिकाश्रम) श्रेष्ठ है। ये तीनों कलियुगमें अत्यन्त दुर्लभ हैं। ,
इतना कहकर ब्रह्माजीने भगवान् राधाकृष्णका स्मरण किया और पुनः नारदजीसे कहा- बेटा ! तुमने समस्त लोकोंका उद्धार करनेके लिये यह बहुत अच्छा प्रश्न किया। मैं कार्तिकका माहात्म्य कहता हूँ। कार्तिकमास भगवान् विष्णुको सदा ही प्रिय है।
कार्तिक मास में भगवान् विष्णुके उद्देश्यसे जो कुछ पुण्य किया जाता है, उसका नाश मैं नहीं देखता । नारद ! यह मनुष्ययोनि दुर्लभ है। इसे पाकर मनुष्य अपनेको इस प्रकार रखे कि उसे पुनः नीचे न गिरना पड़े। कार्तिक सब मासोंमें उत्तम है। यह पुण्यमय वस्तुओंमें सबसे अधिक पुण्यतम और पावन पदार्थोंमें सबसे अधिक पावन है।
कार्तिक मास में दान की महिमा।
कार्तिक मास में भगवान् विष्णुके उद्देश्यसे मनुष्य कार्तिकमें जो कुछ दान देता है, -उसे वह अक्षयरूपमें प्राप्त करता है। उस समय अन्नदानका महत्त्व अधिक है।
उससे पापोंका सर्वथा नाश हो जाता है। जो कार्तिकमास प्राप्त हुआ देख पराये अन्नको सर्वथा त्याग देता है, वह अतिकृच्छ्र यज्ञका फल प्राप्त करता है। |
कार्तिकमासके समान कोई मास नहीं, सत्ययुगके समान कोई युग नहीं, वेदोंके समान कोई शास्त्र नहीं और गंगाजीके समान दूसरा कोई तीर्थ नहीं है।
इसी प्रकार कार्तिक मास में अन्नदानके सदृश दूसरा कोई दान नहीं है। दान करनेवाले पुरुषोंके लिये न्यायोपार्जित द्रव्यके दानका सुअवसर दुर्लभ है, उसका भी तीर्थमें दान किया जाना तो और भी दुर्लभ है।
कार्तिक मास में जरूर करें या कार्य नहीं तो कुछ भी फल प्राप्त नहीं होगा।
- पापसे डरनेवाले मनुष्यको कार्तिक मास में शालग्रामशिलाका पूजन और भगवान् वासुदेवका स्मरण अवश्य करना चाहिये। दान आदि करनेमें असमर्थ मनुष्य प्रतिदिन प्रसन्नतापूर्वक नियमसे भगवन्नामोंका स्मरण करे।
- कार्तिक मास में भगवान् विष्णुकी प्रसन्नताके लिये विष्णु-मन्दिर अथवा शिव मन्दिरमें रातको जागरण करे। शिव और विष्णुके मन्दिर न हों तो किसी भी देवताके
- मन्दिरमें जागरण करे। यदि दुर्गम वनमें स्थित हो या विपत्ति में पड़ा हो तो पीपल के वृक्षकी जड़में अथवा तुलसीके वनोंमें जागरण करे। कार्तिक मास में भगवान् विष्णु के समीप उन्हींके नामों और लीला-कथाओंका गायन करे।
- यदि आपत्तिमें पड़ा हुआ मनुष्य कहीं अधिक जल न पावे अथवा रोगी होनेके कारण जलसे स्नान न कर सके तो भगवान्के नामसे मार्जनमात्र कर ले।
- व्रतमें स्थित हुआ पुरुष ३ यदि उद्यापनकी विधि करनेमें असमर्थ हो, तो व्रतकी समाप्तिके बाद उसकी पूर्णताके लिये न केवल ब्राह्मणोंको भोजन करावे।
- जो स्वयं दीपदान करनेमें असमर्थ हो, वह दूसरेके बुझे हुए दीपको जला दे अथवा हवा आदिसे यत्नपूर्वक उसकी रक्षा करे।
- कार्तिक मास में भगवान् विष्णुकी पूजा न हो सकनेपर क तुलसी अथवा आँवलेका भगवद्बुद्धिसे पूजन करे। ल मन-ही-मन भगवान् विष्णुके नामोंका निरन्तर व कीर्तन करता रहे।
- गुरुके आदेश देनेपर उनके वचनका कभी उल्लंघन न करे। यदि अपने ऊपर दुःख आदि आ पड़े तो गुरुकी शरणमें जाय। गुरुकी प्रसन्नतासे मनुष्य सब कुछ प्राप्त कर लेता है।
- परम बुद्धिमान् कपिल और महातपस्वी सुमति भी अपने गुरु गौतमकी सेवासे अमरत्वको प्राप्त हुए हैं। इसलिये विष्णु भक्त पुरुष कार्तिकमें सब प्रकारसे प्रयत्न च करके गुरुकी सेवा करे। ऐसा करनेसे उसे मोक्षकी प्राप्ति होती है।
- सब दानोंसे बढ़कर कन्यादान है, उससे अधिक विद्यादान है, विद्यादानसे भी गोदानका महत्त्व अधिक है और गोदानसे भी बढ़कर अन्नदान क है क्योंकि यह समस्त संसार अन्नके आधारपर ही जीवित रहता है। इसलिये कार्तिकमें अन्नदान प्रा अवश्य करना चाहिये।
- कार्तिकमें नियमका पालन से करनेपर अवश्य ही भगवान् विष्णुका सारूप्य एवं मोक्षदायक पद प्राप्त होता है। कार्तिकमें ब ब्राह्मण पति-पत्नीको भोजन कराना चाहिये, चन्दनसे उनका पूजन करना चाहिये, अनेक प्रकारके वस्त्र, रत्न और कम्बल देने चाहिये।
- ओढ़नेके साथ ही रुईदार बिछावन, जूता और छाता भी दान करने चाहिये। कार्तिकमें भूमिपर शयन करनेवाला मनुष्य युग-युगके पापोंका नाश कर डालता है।
- जो कार्तिक मास में भगवान् विष्णुके आगे अरुणोदय कालमें जागरण करता है और नदीमें स्नान,भगवान् विष्णुकी कथाका श्रवण, वैष्णवोंका दर्शन | तथा नित्यप्रति भगवान् विष्णुका पूजन करता है, उसके पितरोंका नरकसे उद्धार हो जाता है।
- जिन लोगोंने भक्तिपूर्वक भगवान् विष्णुका पूजन नहीं किया, वे इस कलियुगकी कन्दरामें गिरकर नष्ट हो गये, लुट गये। जो मनुष्य कमलके एक फूलसे देवताओंके स्वामी भगवान् कमलापतिकी पूजा करता है, वह करोड़ों जन्मोंके पापोंका नाश कर डालता है।
- जो कार्तिकमें एक लाख तुलसीदल चढ़ाकर भगवान् विष्णुकी पूजा करता है, वह एक-एक दलपर मुक्तादान करनेका फल प्राप्त करता है।
- जो भगवान्के श्रीअंगोंसे उतारी हुई प्रसादस्वरूपा तुलसीको मुखमें, मस्तकपर और शरीरमें धारण करता है तथा भगवान्के निर्माल्योंसे अपने अंगोंका मार्जन करता है, वह मनुष्य सम्पूर्ण रोगों और पापोंसे मुक्त हो जाता है। भगवत्पूजन सम्बन्धी प्रसादस्वरूप शंखका जल, भगवान्की भक्ति, निर्माल्य-पुष्प आदि, चरणोदक, चन्दन और धूप ब्रह्महत्याका नाश करनेवाले हैं। |
- कार्तिक मास में प्रात:काल स्नान करे और प्रतिदिन अपनी शक्तिके अनुसार ब्राह्मणोंको अन्नदान दे क्योंकि सब दानोंमें अन्नदान ही सबसे बढ़कर है। अन्नसे ही मनुष्य जन्म लेता और अन्नसे ही बढ़ता है। अन्नको समस्त प्राणियोंका प्राण माना गया है।
- अन्नदान करनेवाला पुरुष | संसारमें सब कुछ देनेवाला और सम्पूर्ण यज्ञोंका अनुष्ठान करनेवाला है। पूर्वकालमें सत्यकेतु ब्राह्मणने केवल अन्नदानसे सब पुण्योंका फल पाकर परमदुर्लभ मोक्षको भी प्राप्त कर लिया था। कार्तिकमासमें अनेक प्रकारके दान देकर भी यदि मनुष्य भगवान्का चिन्तन नहीं करता तो वे दान उसे कभी पवित्र नहीं करते।
- कार्तिक मास में भगवन्नाम स्मरणकी महिमाका वर्णन में भी नहीं कर सकता। ‘गोविन्द गोविन्द हरे मुरारे गोविन्द गोविन्द मुकुन्द कृष्ण। गोविन्द गोविन्द रथाङ्गपाणे गोविन्द दामोदर माधवेति ।।’ इस प्रकार प्रतिदिन कीर्तन करे।
- नित्यप्रति भागवतके आधे श्लोक या चौथाई श्लोकका भी कार्तिकमें श्रद्धा और भक्तिके साथ अवश्य पाठ करे। जिन्होंने भागवतपुराणका श्रवण नहीं किया, पुराणपुरुष भगवान् नारायणकी आराधना नहीं की और ब्राह्मणोंके मुखरूपी अग्निमें अन्नकी आहुति नहीं दी, उन मनुष्योंका जन्म व्यर्थ ही गया।
- मनुष्य कार्तिकमासमें प्रतिदिन गीताका पाठ करता है, उसके पुण्यफलका वर्णन करनेकी शक्ति नहीं है। गीताके समान कोई शास्त्र न तो हुआ है और न होगा। एकमात्र गीता ही सदा सब पापोंको हरनेवाली और मोक्ष देनेवाली है।
- कार्तिक मास में गीताके एक अध्यायका पाठ करनेसे मनुष्य घोर नरकसे मुक्त हो जाते हैं, जैसे जड़ ब्राह्मण मुक्त हो गया था। सात समुद्रोंतककी पृथ्वीका दान करनेसे जो फल प्राप्त होता है, शालग्रामशिलाके दान करनेसे मनुष्य उसी फलको पा लेता है। अतः कार्तिकमासमें स्नान तथा दानपूर्वक शालग्रामशिलाका दान अवश्य करना चाहिये।
कार्तिक मास में तुलसी पूजन विधि।
कार्तिक मास में वैसे तो दिपावली के आने से सभी को तुलसी पूजन का समय ज्ञात हो ही जाता है परन्तु इसकी सही विधि और नियम जान लेना बहुत आवश्यक है।
आइये जानते है स्कन्द पुराण के अनुसार क्या है तुलसी पूजन में ध्यान रखने योग्य बातें।
- कार्तिक मास में रोजाना सुबह सूर्योदय से पहले उठाकर स्नान करें और तुलसी को जल चढ़कर धुप दीप आदि सभी उपचारों से पूजन करें।
- कार्तिक मास में ध्यान रहे की रविवार को तुलसी के वृक्ष में जल न डाले कोशिश करें की दूर से ही बिना स्पर्श किये ही पूजन करें। परन्तु जल न चढ़ाएं।
- कार्तिक मास में इस बात का ध्यान रखें की रोज तुलसी के पत्तों से शालिग्राम भगवान् का पूजन अवश्य करें।
- कार्तिक मास में तुलसी के पत्त्तों को पूजन हेतु तोड़ने के सम्बन्ध में कहा गया है की इन्हे सप्ताह में 4 दिन ही तोड़ सकते हैं जो की है – सोमवार, बुढ़वार , बृहस्पतिवार अथवा गुरुवार और शनिवार ।
- अन्य दिन जैसे मंगलवार , शुक्रवार और रविवार के लिए तुलसी एक दिन पहले ही तोड़ लें और स्वच्छ स्थान पर रख दें।
- कार्तिक मास में रोजाना शामकों तुलसी को दीपक अवश्य जलाएं।
- तुलसी पूजन के दौरान मान्यता है की दो दीपक जलाये जाते हैं और वह कपास से बने होते है।
- कार्तिक मास में एक दीपक में तीन लम्बे लम्बे दीपक मिले होते है तथा दूसरे में 108 लम्बे दीपक मिले होते हैं। इस प्रकार पूरे एक माह तक दीपक जलाया जाता है।
- ध्यान रहे की तुलसी के पत्ते सिर्फ विष्णु जी को अर्पित करें यह लक्ष्मी जी के संपर्क में नहीं आये।
कार्तिक मास में व्रत का विधान।
- कार्तिक मास में व्रत आश्विन शुक्ल पक्षको दशमीसे आरम्भ करके कार्तिक शुक्ला दशमीको समाप्त करे, अथवा आश्विनकी पूर्णिमाको आरम्भ करके कार्तिककी पूर्णिमाको पूरा करे।
- भक्तिमान् पुरुष आश्विन शुक्ल पक्षकी एकादशी आनेपर भगवान् विष्णुको नमस्कार करके उनसे कार्तिकव्रत करनेकी आज्ञा प्राप्त करे और विधिसे कार्तिकव्रतका पालन करे।
- बारहों महीनों में मार्गशीर्ष मास अत्यन्त पुण्यप्रद है, उससे अधिक पुण्यफल देनेवाला नर्मदातटपर वैशाख मास बताया गया है। उससे लाख गुना अधिक प्रयागमें माघ मासका महत्त्व है। उससे भी महान् फल देनेवाला कार्तिक मास है।
- इसका महत्त्व सर्वत्र जलमें एक-सा ही है। एक ओर सब दान, व्रत और नियम तथा दूसरी ओर कार्तिकका स्नान तराजूपर रखकर ब्रह्माजीने तौला, तो कार्तिकका ही पलड़ा भारी था।
- स्नान, दीपदान, तुलसीके पौधोंको क लगाना और सींचना, पृथ्वीपर शयन, ब्रह्मचर्यका की पालन, भगवान् विष्णुके नामोंका संकीर्तन तथा को पुराणोंका श्रवण- इन सब नियमोंका जो कार्तिक मासमें (निष्कामभावसे) पालन करते हैं, वे ही जीवन्मुक्त हैं।
- यह व्रत भगवान् श्रीकृष्णको बहुत प्रिय है।
- सूर्यभक्त, गणेशभक्त, शक्ति-उपासक, शिवोपासक और वैष्णव- सभीको सब पापोंका निवारण करनेके लिये कार्तिकस्नान करना चाहिये।
- कार्तिक मास में सूर्यकी प्रीतिके लिये जबतक सूर्यनारायण तुला राशिपर स्थित हों, तब तक व्रत करना चाहिये।
- कार्तिक मास में आश्विनकी पूर्णिमासे लेकर कार्तिककी पूर्णिमातक भगवान् शंकरकी प्रसन्नताके लिये स्नान करना चाहिये।
- कार्तिक मास में देवीपक्ष अर्थात् आश्विन शुक्ल पक्षकी प्रतिपदासे लेकर कार्तिक कृष्ण चतुर्दशीकी महारात्रिके आनेतक भगवती दुर्गाकी प्रसन्नताके लिये स्नान करना चाहिए।
इस महीनेमें तैंतीसों देवता मनुष्यके सन्निकट हो जाते हैं और इसमें किये हुए स्नान, दान, भोजन, व्रत, तिल, धेनु, सुवर्ण, रजत, भूमि, न वस्त्र आदिके दानोंको विधिपूर्वक ग्रहण करते हैं। कार्तिक मास में जो कुछ दिया जाता है, जो भी तप किया जाता है, उसे सर्वशक्तिमान् भगवान् विष्णुने अक्षय फल देनेवाला बतलाया है।
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